देश का सबसे भ्रष्ट प्राधिकरण बना लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए)

LDA: लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) को देश का सबसे भ्रष्ट विकास प्राधिकरण कहना महज एक भावनात्मक आरोप नहीं है, बल्कि यह उन तथ्यों और अनुभवों पर आधारित है जो सालों से जनता के सामने आते रहे हैं। इस लेख में हम एलडीए की भ्रष्ट कार्यप्रणाली को उजागर करेंगे और जानेंगे कि यह कैसे लखनऊ के विकास में बाधा बना हुआ है।
LDA: भ्रष्टाचार के स्तर और आंकड़े
जमीन आवंटन में घोटाले
एलडीए पर कई बार आरोप लगे हैं कि उसने नियमों को ताक पर रखकर प्रभावशाली लोगों को सस्ते दामों पर जमीन आवंटित की। उदाहरण के लिए, गोमती नगर विस्तार योजना में कई प्लॉट्स को बिल्डरों और नेताओं के करीबियों को औने-पौने दामों पर दे दिया गया। एक अनुमान के मुताबिक, पिछले एक दशक में एलडीए ने 500 करोड़ रुपये से अधिक के जमीन घोटाले किए, जिसमें नीलामी प्रक्रिया को दरकिनार किया गया।
LDA: अवैध निर्माण को मंजूरी
लखनऊ में अवैध कॉलोनियों की संख्या पिछले 10 सालों में 300 से अधिक हो चुकी है, जिनमें से ज्यादातर को एलडीए की मिलीभगत से मंजूरी मिली। एक RTI से खुलासा हुआ कि 2018-2022 के बीच 150 से ज्यादा अवैध निर्माणों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, जबकि इनके मालिकों ने कथित तौर पर अधिकारियों को मोटी रिश्वत दी।
नक्शा पास करने में रिश्वतखोरी
लखनऊ में 70% से अधिक लोगों का कहना है कि बिना रिश्वत दिए उनका नक्शा पास नहीं होता। छोटे प्लॉट के लिए 50,000 से 2 लाख रुपये तक और बड़े प्रोजेक्ट्स के लिए 10 लाख रुपये से अधिक की रिश्वत सामान्य बात है। इससे प्राधिकरण की आय का एक बड़ा हिस्सा अघोषित रूप से अधिकारियों की जेब में जाता है।
पर्यावरण और जन सुविधाओं की अनदेखी
एलडीए की भ्रष्टाचार भरी नीतियों का असर पर्यावरण और जन सुविधाओं पर भी साफ दिखता है। गोमती नदी के किनारे अवैध निर्माण को अनदेखा करना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। 2020 में एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि नदी के 100 मीटर के दायरे में 50 से अधिक इमारतें खड़ी की गईं, जो नियमों का उल्लंघन था, लेकिन एलडीए ने इसे नजरअंदाज किया।
इसके अलावा, शहर के पार्क और हरे-भरे इलाकों को बिल्डरों के हवाले कर दिया गया। आंकड़ों के मुताबिक, लखनऊ में हरित क्षेत्र 2000 में 15% था, जो अब घटकर 5% से भी कम रह गया है।
कर्मचारियों और अधिकारियों की मिलीभगत
एलडीए में भ्रष्टाचार केवल उच्च अधिकारियों तक सीमित नहीं है; यह नीचे तक फैला हुआ है। एक जांच में पाया गया कि प्राधिकरण के 60% से अधिक कर्मचारी नियमित रूप से रिश्वत लेने में शामिल हैं। 2021 में एक स्टिंग ऑपरेशन में एलडीए के एक जूनियर इंजीनियर को 2 लाख रुपये की रिश्वत लेते पकड़ा गया था, लेकिन उस पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई। इससे साफ है कि यहाँ भ्रष्टाचार एक संगठित सिस्टम के तहत चल रहा है।
जनता की शिकायतों का हाल
एलडीए की जन शिकायत निवारण प्रणाली पूरी तरह ढोंग है। पिछले 5 सालों में दायर 10,000 से अधिक शिकायतों में से केवल 10% का समाधान हुआ, और वो भी ज्यादातर प्रभावशाली लोगों की शिकायतें थीं। आम आदमी की शिकायतें या तो अनसुनी कर दी जाती हैं या उन्हें फाइलों में दफन कर दिया जाता है। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में भी देरी और गलत जवाब देना आम बात है।
निष्कर्ष
लखनऊ विकास प्राधिकरण आज विकास का प्रतीक नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार, लूट और अव्यवस्था का गढ़ बन चुका है। इसके घोटालों की कीमत शहर की जनता को खराब बुनियादी ढांचे, प्रदूषण और आर्थिक नुकसान के रूप में चुकानी पड़ रही है। जब तक इस प्राधिकरण में आमूल-चूल सुधार नहीं होगा या इसे पूरी तरह भंग नहीं किया जाएगा, लखनऊ का सपना एक विकसित शहर बनने का अधूरा ही रहेगा। यह संस्था आज न केवल लखनऊ के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक सबक है कि कैसे भ्रष्टाचार किसी शहर के भविष्य को तबाह कर सकता है।
LDA:
BY AKASH AWASTHI